अश्लीललता का आरोपी शिक्षक पारसनाथ आखिर हुआ निलंबित
अश्लीललता का आरोपी शिक्षक पारसनाथ आखिर हुआ निलंबित
बड़ा सवाल! पुराने आरोपों पर किसने और क्यों डाला पर्दा?
*क्या लेन-देन कर बकहो की जांच को प्रभावित किया गया?*
अब उठ रही है पुरानी जांच की समीक्षा और जांचकर्ताओं पर कार्रवाई की मांग
मोहम्मद हसन खान
9425 931126
शहडोल। जिले की दो स्कूलों में प्रमाणित रूप से हुए शर्मनाक वाकिये का आखिर कमिश्नर शहडोल की सख्ती से अंत हो ही गया। बता दें कि 15 दिसंबर 2022 को बकहो हायर सेकेण्डरी स्कूल के प्राचार्य ने एक लिखित शिकायत में सहायक आयुक्त जनजातीय कार्य विभाग को उनके यहां पदस्थ शिक्षक पारसनाथ विश्वकर्मा द्वारा बच्चियों से अभद्रता व अश्लीलता की शिकायत की थी। लगता है इसे हल्के में लिया गया और जांच पूरे जिले में मौजूद वरिष्ठ प्राचार्यों तथा दूसरे अधिकारियों के बावजूद सहायक आयुक्त ने चंद कनिष्ठों को जिन्हें उन्हें उनका विश्वासपात्र भी कहा जाता है को सौंप दी। जांच टीम में तब नई-नई बनीं प्राचार्य रेवा पाण्डे और अंग्रेजी विषय की ही व्याख्याता अनुपमा प्रकाश के साथ ही अनुपमा के कहने पर उनके ही विद्यालय में तैनात ऐसे कनिष्ठ कर्मचारी को दी गई जो कि बीमा, आरडी मास्टर के नाम से पहले से ही जाना जाता है।
तीनों ने जांच के नाम पर कई बार विद्यालय का चक्कर लगाया। शिकायत करने वाली बच्चियों को प्रभावित करने की कोशिशों के आरोप भी लगे। इस बीच पारसनाथ से नाटक भी रचाया गया और बच्चियों के सामने रोने-गिड़गिड़ाने का अभिनय कराया गया। कुछ बच्चियां पसीज भी गईं। बताते हैं कि जांच टीम ने बच्चियों को प्रभावित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी बावजूद इसके कई तब भी और अब भी पारसनाथ की हरकतों को लेकर सच्चाई बताने पर अड़ी थीं और हैं।
बता दें कि शिकायतकर्ताओं में से कई बच्चियों ने बाद में परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन भी किया। इस बीच पूरे बकहो में अफवाह फैली कि जांच को प्रभावित करने कि लिए पेटियों का खेला शुरू हो गया है। लोगों को विश्वास नहीं हुआ लेकिन जब गंदी हरकतों के लिए चर्चित शिक्षक को ससम्मान जैतपुर के लिए 16 दिसंबर 2022 को ही फरमान जारी हो गया तो चर्चाओं में दम लगा। उस समय भी यह सवाल मीडिया में उठे थे कि इतनी गंभीर शिकायत के बावजूद केवल स्कूल परिवर्तन करना कितना उचित है? लेकिन कुछ हुआ नहीं उल्टा पारसनाथ जैसे विभाग के लिए दुधारू गाय बन गया हो और पहले उसे बाइज्जत जैतपुर भेजा गया फिर पता नहीं ऐसी कौन सी जरूरत आ पड़ी जो चुनाव की घोषणा बीच उसे जैतपुर से आचार संहिता के दौरान ही अमलाई नं. 3 जो उसके घर से केवल 2 किमी की दूरी पर है कि लिए नया आदेश जारी हो गया।
निश्चित रूप से पूरा मामला ही संदिग्ध है।
अब जब पारसनाथ एक बार फिर अपनी गंदी हरकतों के चलते अमलाई नं.3 में आरोपों में घिर गया और संभाग के न्यायप्रिय और कर्तव्यनिष्ठ कमिश्नर बीएस जामोद को समझ आ गया कि सच्चाई क्या है तो वह तत्काल न केवल निलंबित हुआ बल्कि उसका कार्य स्थल और विकास खण्ड भी बदल गया। लेकिन इस पूरे मामले से विभागीय कार्यप्रणाली पर कई तरह के सवाल खड़े कर दिए हैं। पहला यह कि बच्चियों की शिकायत पर दो महिलाओं और एक अदने से हाकिम को यह क्यों नहीं समझ आया कि यह बेहद गंभीर और संवेदनशील मामला है और बच्चियां बयान पर अड़ी हुई हैं। जांच टीम में शामिल रेवा पाण्डे, अनुपमा प्रकाश तथा सहायक शिक्षक विपिन बिहारी सिन्हा को सच्चाई क्यों नहीं दिखी? क्या उन्हें निर्देशित कर ही वरिष्ठ और दिग्गज अधिकारियों तथा प्राचार्यों के रहते जांच सौंपी गई थी कि किसी भी तरह मामले को गुड़-गोबर कर दिया जाए? अब सवाल रेवा पाण्डे, अनुपमा प्रकाश तथा बिहारी सिन्हा पर भी उठ रहे हैं तथा पूरे अंचल में इस जांच पर ही सवाल उठ रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि जांच टीम का अर्दली बकहो में उस दौरान कई बार देखा गया। जिसने जांच के दौरान बच्चियों पर बयान बदलने की कई नाकाम कोशिशें की। बच्चियां आज भी पारसनाथ के नाम पर सिहर उठती हैं। नर्मदा की पुकार ने पूरी जानकारी तथा बच्चियों की शिकायत के बाद पाया कि भला कोई भी बच्ची ऐसी शिकायत जब तक पानी सर न उठ जाए क्यों करेगी? सवाल उस समय की जांच टीम पर उठता है और उस जांच की भी जांच होनी ही चाहिए ताकि भविष्य में कभी दुर्भाग्यवश ऐसी शिकायतें आए तो उसकी सही जांच हो न की लीपा पोती के लिए अपने चहेतों की टीम गठित कर लोगों की भावनाओं से खेला जाए।
अच्छा होता कि अब वरिष्ठ अधिकारी 16 दिसंबर 2022 को उपायुक्त जनजातीय कार्यविभाग के द्वारा जारी आदेश के परिपेक्ष्य में हुई जांच रिपोर्ट का न केवल अध्ययन करें बल्कि उस जांच की जांच की जाए जिसमें इतने गंभीर आरोपों के बावजूद रेवा पाण्डे, अनुपमा प्रकाश तथा अर्दली ने बड़ी सच्चाई से तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर रिपोर्ट दी। यदि तब भी सच्चाई सामने ला दी जाती तो उसी समय पारसनाथ विश्वकर्मा पर कड़ी कार्रवाई हो जाती और अमलाई नं.3 में इसकी पुनरावृत्ति नहीं हो पाती।
अब लोग इस बात की चर्चाएं कर रहे हैं कि महिला जांचकर्ताओं को तो बच्चियों की पीड़ा नहीं दिखी लेकिन अमलाई नं.3 में कक्षा के बहिष्कार पर अड़ी छात्राओं की शिकायत वहां के जांच अधिकारी को तुरंत समझ आ गई और मामला इतने ऊंचे स्तर पर पहुंच गया। अब जांच के कई बिन्दु फिर जिन्दा हो गए हैं जिसमें कैसे बकहो की जांच टीम ने सही रिपोर्ट नहीं दी इसके पीछे कौन से कारण हैं, कैसे इतने घृणित आरोप के आरोपी को ससम्मान जैतपुर के लिए आदेशित कर दिया गया और ऐसी कौन सी मुसीबत आन पड़ी थी जो उसे चुनावों के दौरान ही अमलाई नं. 3 में पोस्टिंग करने के लिए विभाग ने इतनी बड़ी कवायद की?
अब क्या विभाग स्वतः संज्ञान लेकर बकहो की शिकायत की फिर समीक्षा करेगा और जांच टीम पर कार्रवाई करेगा तथा क्या आगे विभाग खुद से कड़ा संज्ञान लेगा ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो? सूत्र बताते हैं कि पारसनाथ हमेशा विवादों में रहा है। बकहो से पहले इस पर बलबहरा में पोस्टिंग के दौरान भी ऐसे ही आरोप लगे थे और गांव वालों ने इसको स्कूल में ही खदेड़ा था। ऐसी ही घटना बकहो में भी घट चुकी है लेकिन हैरानी की बात है कि बकहो गई जांच टीम को यह सब क्यों नहीं दिखा? जनचर्चा है कि अपनी आधी कमाई विभाग और जांच करने वालों पर लुटाने वाले पारसनाथ ने की अमलाई नं.3 में नहीं चल पाई। अब पारसनाथ की सूक्ष्म जांच होनी चाहिए तथा उसका नॉर्को टेस्ट भी कराया जाए कि उसे किस-किस ने संरक्षण दिया है और कैसे उसको बकहो से जैतपुर और जैतपुर से अमलाई नं.3 की पोस्टिंग मिली। निश्चित रूप से इ उनससे जनजातीय कार्य विभाग के कारगुजारियों का भी बड़ा खुलासा होगा।