भाजपा नेता इंद्र की मौत से चिकित्सा व्यवस्था पर फिर उठे सवाल,आखिर कब मरीजों को मिलेगी मौत से राहत
भाजपा नेता इंद्र की मौत से चिकित्सा व्यवस्था पर फिर उठे सवाल,आखिर कब मरीजों को मिलेगी मौत से राहत
भाजपा की सत्ता, मंत्री, सांसद, सब है मगर न स्वास्थ्य, न रेल संसाधन न रोजगार, उम्मीद करें तो किससे?
क्या कोतमा में कभी बनेगा सिविल अस्पताल ?
पुनीत कुमार सेन
कोतमा । सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कोतमा लंबे समय से अपनी बदहाली के आंसू बहा रहा है। चिकित्सा के अभाव में एक के बाद एक हुई मौतों ने कहीं न कहीं कोतमा नगर की चिकित्सा अव्यवस्था की दुर्दशा पर एक प्रश्रचिन्ह खड़ा होता रहा है। मंगलवार की दरम्यानी रांत लगभग 10 बजे नगर के व्यवसायी भाजपा नेता इंद्र कुमार जैन की अचानक तबियत बिगड़ना और इलाज की आस में कोतमा अस्पताल लाना और समय से उनका समुचित इलाज न हो पाना उनकी मौत का कारण बन गया। जानकारों की माने तो एक स्वस्थ्य हृष्ट पुष्ट इंसान इंद्र कुमार जैन अपनी दैनिक दिनचर्या की तरह रांत में सोने से पहले नाइट वाक करके घर पहुंचे। उन्हें तबियत खराब सी लगी परिजन उन्हें लेकर कोतमा अस्पताल पहुंचे। मगर अस्पताल में न ईसीजी मशीन, रक्तचाप नापने वाली मशीन में बैटरी नही। इससे पहले की डॉक्टर उनका मर्ज समझ पाते। ईसीजी मशीन कही से लाई जाती तब तक उनकी मौत हो गयी। उनकी असमय मौत ने फिर एक बार कोतमा चिकित्सा व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी।
भाजपा की सत्ता, मंत्री, सांसद, सब है मगर न स्वास्थ्य, न रेल संसाधन न रोजगार, उम्मीद करें तो किससे?
कहने को तो प्रदेस में 20 साल से भाजपा की सरकार है व जिले मे भाजपा के तीन,चार, बार जीते विधायक व दो बार जीते मंत्री, व सांसद सब है मगर उम्मीद करें तो किससे? न ढंग से रेल संसाधन है, न चिकित्सा व्यवस्था,न रोजगार के साधन है। जनता आज भी चिकित्सा के लिए बिलासपुर,रायपुर, जबलपुर,नागपुर,दिल्ली पर निर्भर है। मगर यहाँ तक पहुंचने के लिए भी समुचित रेल संसाधन नही है। कहने को तो अंबिकापुर से निजामुद्दीन ट्रेन चलती है। मगर कोतमा में स्टॉपेज नही है। शहडोल से नागपुर ट्रेन है। मगर अनुपपुर जिले की जनता को नागपुर ट्रेन का लाभ नही है। जिले में मोजर बियर, नीलकंठ, जेएममएस,वेलस्पन,अडानी, जैसी कम्पनियां काम कर रही है। मगर स्थानीय युवाओ को रोजगार नही मिल रहा।
एक तो वैसे भी जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था बहुत अच्छी नही है। समय समय पर नगर के युवाओ ने चिकित्सा व्यवस्था की बदहाली के लिए आंदोलन किये। सोशल मीडिया में कोतमा अस्पताल की बदहाली की दास्तां अक्सर देखने को मिलती हैं। इंद्र कुमार जैन की असमय मौत से कोतमा समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के बदहाली की तस्वीर चीख चीख कर कोतमा विधानसभा के नेताओ की उदासीनता और मंत्री, सांसद की विफलता के किस्से बयां रही है।
समाजसेवियों के भरोसे अस्पताल, निष्क्रिय है नेता
कोतमा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की चिकित्सा व्यवस्था सुधारने जनता ने कई बार शासन सत्ता व नेताओ के आगे हाथ फैलाये। मगर कभी उनकी जरूरतें पूरी नही हुई। कोतमा नगर में एक से एक दानदाता है समाजसेवी जनप्रतिनिधि हैं। जो नगर के स्वास्थ्य सुविधाओं, चिकित्सा व्यवस्था के लिए तन मन धन सबकुछ अर्पण करने को तैयार हैं। करते भी है किये भी है और करने के लिए तैयार भी हैं। कलमकारों की कलम लिखते लिखते थक गई, नगर के युवा आंदोलन करते करते थक गए। मगर घोषणा वीर नेताओ की शर्म नही मरी। चुनाव के दरम्यान, सभी पार्टियों व दावेदारों द्वारा स्वास्थ्य शिक्षा रोजगार को लेकर बड़े बड़े वादे किये गए,मगर चुनाव जीतने के बाद वादे कभी पूरे नही हुए।
सिर्फ ओपीडी सेवाओ के अलावा रेफर
कोतमा विधानसभा के 2.5 लाख मतदाताओं की उम्मीदों का इकलौता चिकित्सालय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कोतमा जहां ओपीडी सेवा के साथ सर्दी बुखार खांसी मलेरिया, डिलीवरी,टीकाकरण,नसबंदी, एक्सरे,व पैथालॉजी,फीवर क्लिनिक के साथ मरीजों को भर्ती कर सामान्य इलाज बॉटल, इंजेक्शन की व्यवस्था है। ड्यूटी डॉक्टर व स्टाफ मौजूद व्यवस्थाओं के साथ यथा सम्भव मरीजों के इलाज का हर सम्भव प्रयास भी करते हैं। मगर वो भी चिकित्सा अव्यवस्थाओं को लेकर मजबूर हैं। करें तो क्या करें अस्पताल में न साधन है न संसाधन, बॉटल इंजेक्शन, गोली,दवाई, के अलावा यदि कोई आकस्मिक चिकित्सा की उम्मीद लेकर कोई मरीज आया तो सिवाय रेफर के अलावा कोई दूसरा रास्ता नही है। और यदि रेफर करने में थोढा भी विलंब हुआ तो मरीज की मौत सुनिश्चित है।
क्या कोतमा में कभी बनेगा सिविल अस्पताल ?
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के जिम्मेदार अधिकारी, डॉक्टर और बीएमओ के अड़ियल रवैया और लापरवाही के कारण कोतमा सहित आस पास की जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ना तो उचित मात्रा में मरीजों को दवाइयां उपलब्ध हो रही हैं और ना ही हॉस्पिटल में इलाज कराने वाले मरीजों को समुचित इलाज ही मिल रहा है। गनीमत है कि कोतमा के दानदाताओं द्वारा दी हुई वाटर प्यूरीफायर मशीन,आक्सीजन कन्सल्टेंटर, गद्दा तकिया,चादर एम्बुलेंस ने स्वास्थ्य केंद्र की सांसो को जीवित कर रखा है। कोतमा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र दान वीरों के बदौलत जिंदगी की सांस ले रहा है। यह इस क्षेत्र का सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य कि किसी तरह सरकार ने जनता की जरूरतों को देखते हुए 30 बिस्तर के अस्पताल की बिल्डिंग तो दे
दी है। मगर उस बिल्डिंग में संसाधन और चिकित्सकीय सुविधा देना भूल गए हैं। युवाओ ने कई बार सिविल अस्पताल की मांग को लेकर आंदोलन किये धरना प्रदर्शन किए चुनाव के दौरान, चुनाव बहिष्कार कोतमा बीमार की अलख जगाई। मगर नेताओ की उदासीनता के कारण आज तक कोतमा अस्पताल संसाधन विहीन है। बढ़ती आबादी व आकस्मिक जरूरतों को देखते हुए आम जनता, युवाओ, समाजसेवियों व नेताओ को कोतमा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को सिविल अस्पताल बनाने की मांग को लेकर आवाज बुलंद करने की आवश्यकता है।