एक सौ चालीस बीघा उपजाऊ जमीन,लाखो की नीलामी होने के बावजूद भी मंदिर की स्थिति दयनीय

माइकल दीक्षित

लवकुशनगर। नगर में स्थित बड़े तालाब के पास ताल गूदड़ नाम से नरसिंह भगवान का एक मंदिर है और यह मंदिर करोड़ों की संपत्ति का मालिक है। लेकिन इसके बावजूद भी यह मंदिर अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है और अपने अस्तित्व की अंतिम सांसे गिन रहा है। राम जानकी मंदिर एवं ताल गूदड़ इन दो मंदिरों का एक ट्रस्ट बना हुआ है जिनके अध्यक्ष लवकुशनगर तहसीलदार हैं। इन दोनों मंदिरों के विकास रखरखाव देखरेख की जिम्मेदारी ट्रस्ट को दी गई है। लेकिन ट्रस्ट होने के बावजूद भी मंदिर की जमीन की नीलामी के लाखों रुपए आने के बावजूद भी यह दोनों मंदिर अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं और चीख-चीख यह मंदिर कह रहे हैं, कोई तो हमें बचा लो।

मंदिरों की सैकड़ों बीघा जमीन जिसकी नीलामी प्रति एक वर्ष के लिए होती है पिछले वर्ष इस मंदिर की जमीन की नीलामी 5 लाख 80 हजार रुपये में 1 वर्ष के लिए हुई थी और इस वर्ष भी इस जमीन की नीलामी 5 लाख 81 हजार में हुई है यह नीलामी कई सालों से मंदिर के नाम से होती चली जा रही है और यह पैसा मंदिर के नाम से ट्रस्ट के खातों में जमा होता चला आ रहा है। अगर देखा जाए तो कई साल के नीलामी के रुपए जमा भी हो चुके हैं। लेकिन फिर भी मंदिर की यह दुर्दशा देखकर साफ जाहिर होता है कि भगवान से मोह नहीं है सिर्फ जमीन से आने वाले पैसे से मोह है आखिर कहां जाता है यह पैसा ? जो मंदिर अपनी दुर्दशा में आंसू बहा रहे हैं।

पुजारी मजदूरी करके चढ़ा रहा सुबह - शाम का प्रसाद

मंदिर के पुजारी का कहना है की उन्हें अभी तक सिर्फ ₹2000 मिलते रहे उसी में सुबह शाम का प्रसाद भी शामिल रहा इसके अलावा समिति के द्वारा कोई भी राशि पृथक से देय नहीं रही और जब कभी ज्यादा समस्या गई तो पुजारी ने मजदूरी करके ईश्वर की सेवा की है। पुजारी रामदास का कहना है की सालाना 25000 का वेतनमान प्रसाद सहित पुजारी के लिए और कभी कभार पुताई का कार्य जरूर समिति करवा देती है इसके अलावा किसी भी प्रकार का व्यय मंदिर परिसर में पिछले 40 वर्षों से नहीं हुआ, मंदिर की आय का हिस्सा इसके अलावा आज तक मैंने कहीं खर्च होते नहीं देखा।

धार्मिक व सामाजिक संगठनों एवं जागरूक लोगों ने भी नहीं ली मंदिर परिसर की सुध

वास्तविक परिस्थितियों को देखते हुए लग रहा है, कि हो सकता है ट्रस्ट के लोगों में कार्यों को लेकर शिथिलता रही या भ्रष्टाचार के समुंदर में तैराकी होती रहीं, यह एक अपने आप में सवालिया निशान हैं।
धर्म एवं समाज के नाम पर अनेक प्रकार के संगठन, समाज पर कार्य कर रहे हैं, दिन-रात सोशल मीडिया जय श्री राम के नारों से गूंज रही है, इस नगर के लोगों ने नगर से 400-500 किलोमीटर दूर तक के मंदिरों में सहयोग की सहभागिता निभाई है आखिरकार यहां किसके डर के कारण इन संगठनों एवं समाज की निगाहें इस मंदिर परिसर की ओर नहीं गई। अगर इस परिसर में आय का स्रोत ना होता तो हो सकता है। पुजारी की आशा समिति से ना होती, और मंदिरों की यह दुर्दशा देखकर हम आज लिखने को मजबूर ना होते, जब आय हैं तो   आय गई कहां, कौन इन मंदिरों की दुर्दशा की जिम्मेदारी लेगा। संगठनों एवं समाज के लिए एक खुली चेतावनी हो सकती है कि जिस मंदिर परिसर में इस प्रकार अगर ट्रस्ट में शिथिलता है तो ट्रस्ट का पुनर्गठन होना चाहिए और सभी को आगे आकर प्रयास करना चाहिए जिससे यहां की व्यवस्था सुचारू रूप से संचालित हो सके और मंदिरों का पुनः निर्माण हो सके। शासन प्रशासन की भी इसमें कोई रुचि नहीं दिख रही हैं, आखिर कब तक मंदिरों का माहौल खंडर की तरह देखने को मिलेगा।